Tuesday, April 30, 2019

इस बार क्यों आ रहे आचार संहिता उल्लंघन के इतने मामले?

ये बात तब की है जब टीएन शेषन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त थे. ये वो दौर था जब पहली बार राजनीतिक दलों और मतदाताओं को चुनाव आयोग की शक्तियों का अहसास हुआ.

शेषन की कार्यशैली से पहली बार राजनीतिक दल, उम्मीदवारों और सरकारी अमले के लोगों को 'चुनाव अचार संहिता' का अहसास हुआ.

चुनाव आयोग की कार्यशैली ने लोकतंत्र पर सबका विश्वास मज़बूत किया और अचार संहिता ने राजनीतिक दलों और सरकारी महकमे में क़ानून का डर पैदा किया.

हालांकि मज़ेदार है कि अचार संहिता 'किसी क़ानून के दायरे' में नहीं है. इस संहिता को सब राजनीतिक दलों की सहमति से बनाया गया था.

चुनाव आयोग की प्रवक्ता शेफाली शरण ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि इस संहिता को क़ानून के दायरे से इसलिए अलग रखा गया था ताकि इसकी आड़ में राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में अड़चनें पैदा ना कर दें.

विभिन्न राजनीतिक दलों की सहमति से चुनाव आयोग को एक स्वायत्तशासी संस्था इसलिए बनाया गया है ताकि इसकी कार्य करने की शैली पर किसी भी तरह का राजनीतिक या सरकारी दबाव ना हो.

2019 के लोकसभा चुनावों के लिए 10 मार्च से ही अचार संहिता को लागू कर दिया गया था और आयोग के अधिकारी कहते हैं कि एक महीने के अंदर ही आयोग को इसकी अवहेलना की 40 हज़ार से ज़्यादा शिकायतें मिलीं जिनमें से ज़्यादातर शिकायतों का निपटारा कर दिया गया है.

लेकिन चुनावी प्रक्रिया के शुरू होते ही शिकायतों का अम्बार लगने लगा है. शेफाली शरण कहती हैं कि ऐसा कहीं भी नहीं कहा गया है कि इसकी तय सीमा होगी जिसके अंदर ही शिकायतों का समाधान होगा या उसपर कार्यवाही की जाएगी.

बीबीसी से बात करते हुए वो कहती हैं कि अचार संहिता का पूरा मसौदा आयोग की वेबसाइट पर दिया गया है. वो कहती हैं, "जैसे जैसे शिकायतें आतीं हैं उनकी जांच होती है और शिकायतों पर कार्यवाही भी की जाती है."

सोशल मीडिया की सक्रियता ने चुनाव आयोग के काम को ज़्यादा मुश्किल बना दिया है. अचार संहिता के मामले चुनाव आयोग ही सुनता है, उसकी सुनवाई भी खुद करता है और उसका निपटारा भी खुद करता है.

चुनाव आयोग को ये अधिकार है कि वो शिकायतों के बाद आरोपियों को खुद दण्डित करे. ये अधिकार उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 से मिले हैं.

चुनाव आयोग के अधिकारियों का कहना है कि इसमें कुछ अपवाद भी हैं.

हाल ही में कई मामले ऐसे आए जिसमें चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों को प्रचार करने में 72 घंटों की रोक लगा दी या फिर 24 घंटों की.

इनमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मायावती और समाजवादी पार्टी के आज़म खान के नाम प्रमुख हैं.

क़ानून के जानकार मानते हैं कि चुनाव से जुड़े कई मामले हैं जिन्हें अदालत में चुनौती दी जा सकती है.

मसलन अगर चुनावी प्रक्रिया में भारतीय दंड विधान की धारा 1860 के उल्लंघन की आशंका हो या क्रिमिनल प्रोसीजर कोड यानी सीआरपीसी की धारा 1973 हो या फिर 1951 के जनप्रतिनिधित्व कानून के अंतर्गत आने वाले मामले हों - इन सबको अदालत में चुनौती दी जा सकती है.

कई ऐसे बड़े मामले हैं जिनको लेकर चुनाव आयोग के समक्ष विभिन्न राजनितिक दलों ने शिकायतें दर्ज की हैं.

उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद में एक चुनावी सभा में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आरोप था कि उन्होंने ने भारतीय सेना को 'मोदी जी की सेना' कहकर सम्बोधित किया.

चुनाव आयोग ने आदित्यनाथ को इसपर नोटिस जारी कर जवाब तलब करते हुए आगे से ऐसा नहीं करने को कहा.

मोदी की बायोपिक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ज़िन्दगी पर बनी फ़िल्म 'पीएम नरेंद्र मोदी' पर भी शिकायतों के बाद चुनाव आयोग ने चुनावों के संपन्न होने तक प्रतिबन्ध लगा दिया है.

इस फिल्म में नरेंद्र मोदी का किरदार, जाने माने फिल्म अभिनेता विवेक ओबेरॉय निभा रहे हैं.

हलांकि फ़िल्म के निर्माताओं ने इसपर आपत्ति जताते हुए कहा है कि फ़िल्म के प्रसारण को रोकना अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन है.

इस मामले में आयोग ने खुद को बेबस महसूस किया क्योंकि राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने 23 मार्च को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित किया था.

उनपर आरोप है कि उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा था कि नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री चुना जाना चाहिए.

कल्याण सिंह पर अचार संहिता के उलंघन का मामला था लेकिन चुनाव आयोग की तरफ से इसपर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया.

चूँकि कल्याण सिंह राज्यपाल हैं इसलिए चुनाव आयोग ने मामले को लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास शिकायत दर्ज की है.

आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग के संज्ञान में देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने एक निजी चैनल को दिए साक्षात्कार में फौजी अभिनन्दन के फोटो का इस्तेमाल किया और पायलट की बहादुरी का श्रेय लेने की कोशिश की.

इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी ने भी चुनाव आयोग के समक्ष विपक्षी दलों पर कई आरोप लगाए हैं.

आयोग के कुछ अधिकारियों का कहना है कि वैसे तो शिकायतों पर फ़ौरन ही कार्यवाही शुरू हो जाती है, कभी कभी थोड़ी देरी भी होती है.

फिलहाल चुनाव आयोग के समक्ष अचार संहिता के उल्लंघन के मामलों का अम्बार लगा हुआ है और अधिकारी कहते हैं कि वो हर शिकायत पर काम कर रहे हैं.

Thursday, April 4, 2019

探访木里火灾牺牲消防员驻地:被摘下的26枚肩章

  中新网凉山4月4日电 题:探访木里火灾牺牲消防员驻地:被摘下的26枚肩章

  记者 贺劭清 杨勇

  宿舍里被叠成“豆腐块”的棉被、水房中军绿色毛巾整齐悬挂……除了衣柜中被取下肩章的队服,四川凉山州西昌森林消防大队的驻地仍保持着消防队员们奔赴木里森林火灾前的模样。

  3月30日,四川凉山州木里县发生森林火灾。为防止火势蔓延到附近村镇,凉山扑火人员“逆行”进入海拔4000多米的原始森林扑火。大火造成了30名扑火人员不幸遇难,其中有26名来自西昌森林消防大队。

  虽然西昌森林消防大队已退出现役,但大队还是按照军人惯例,摘下了队中26名牺牲消防队员的肩章,交给他们悲痛的亲人。

  这26名消防队员包括1位“80后”、23位“90后”、2位“00后”。他们有的刚刚新婚,每一个微信朋友圈的动态都在“任务途中”;有的没来得及给自己暗恋三年的姑娘告白,便已生死相隔;有的在事故发生前两天,通过网络留下一张自己在黑暗中面向熊熊山火奔跑的照片,配文“来,赌命”。

  “回来以后洗了很多次手,但是被大火熏黑的手怎么洗都是这样(黑)。”西昌大队大队长张军说,自己从事消防工作十多年,参与了上百次森林火灾扑救,木里火灾中的爆燃还是第一次遇见。

  驻地小楼的外墙上,“赴汤蹈火”的红色大字在阳光下显得尤为耀眼,多次亲历火灾救援一线的消防人员对此感受颇深。“我们活着的人要完成牺牲战友未完成的事业,刻苦训练,保护人民生命财产安全,保护生态安全,保护森林资源。”西昌大队四中队一班班长杨杰感慨。

社科院:不宜对“五一”、暑期旅游市场反弹预期过于乐观

  中新社北京4月21日电 (记者 陈溯)中国 世界卫生组织与 色情性&肛交集合 美国的摩擦本 色情性&肛交集合 月越演越烈, 色情性&肛交集合 特别是在4月中旬,美国总统特朗 色情性&肛交集合 普宣布冻结美国给予世卫 色情性&肛交集合 的资金补助引起 色情性&肛交集合 轩然大...